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देवता: इन्द्र: ऋषि: वसिष्ठः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

तं त्वा॑ म॒रुत्व॑ती॒ परि॒ भुव॒द्वाणी॑ स॒याव॑री। नक्ष॑माणा स॒ह द्युभिः॑ ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ tvā marutvatī pari bhuvad vāṇī sayāvarī | nakṣamāṇā saha dyubhiḥ ||

पद पाठ

तम्। त्वा॒। म॒रुत्व॑ती। परि॑। भुव॑त्। वाणी॑। स॒ऽयाव॑री। नक्ष॑माणा। स॒ह। द्युऽभिः॑ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:31» मन्त्र:8 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:16» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन प्रशंसा करने योग्य हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् ! जिन (त्वा) आपको (मरुत्वती) जिसमें प्रशंसायुक्त मनुष्य विद्यमान (सयावरी) जो साथ जाती (नक्षमाणा) और सब विद्याओं में व्याप्त होती हुई (वाणी) वाणी (द्युभिः) विज्ञानादि प्रकाशों के (सह) साथ (परि, भुवत्) सब ओर से प्रसिद्ध हो (तम्) उन आपको हम लोग सब ओर से भूषित करें ॥८॥
भावार्थभाषाः - जिस विद्वान् राजा वा उपदेशक विद्वान् की सकलविद्यायुक्त वाणी उत्तम और कार्य करनेवाले उपदेश के योग्य हो, वही सब प्रशंसा को योग्य होता है ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कः प्रशंसनीयः स्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! यं त्वा मरुत्वती सयावरी नक्षमाणा वाणी द्युभिः सह परिभुवत्तं त्वा वयं सर्वतो भूषयेम ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) (त्वा) त्वाम् (मरुत्वती) प्रशस्ता मरुतो मनुष्या विद्यन्ते यस्यां सा (परि) (भुवत्) भवेत् (वाणी) वाक् (सयावरी) या सहैव याति (नक्षमाणा) सर्वासु विद्यासु व्याप्नुवती (सह) (द्युभिः) विज्ञानादिप्रकाशैः ॥८॥
भावार्थभाषाः - यस्य विदुषो राज्ञ उपदेशकस्य वा सकलविद्यायुक्ता वाणी उत्तमा कार्यकरा उपदेश्या वा स्यात् स एव सर्वा प्रशंसामर्हति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या विद्वान राजा किंवा उपदेशक विद्वानाची संपूर्ण विद्यायुक्त वाणी उत्तम व उपदेशकाच्या योग्य असेल तर तो प्रशंसायोग्य असतो. ॥ ८ ॥